‘आदित्य L1’ क्या है

Aditya L1 in Hindi

आदित्य L1 , भारत का पहला मिशन होगा जिसमें एक उपग्रह अंतरिक्ष में रहकर सूर्य का अध्ययन करेगा । इसमें अंतरिक्ष यान को सूर्य -पृथ्वी प्रणाली के लाग्रेंज बिन्दु (L1) के चारों ओर के प्रभामंडल कक्ष (Halo orbit) में रखा जाएगा। इस बिन्दु की पृथ्वी से दूरी 15 लाख किलोमीटर है। याद रहे पृथ्वी की सूर्य से दूरी 15 करोड़ किलोमीटर है।

इस जगह का फायदा यह है कि इस जगह से सूर्य को लगातार देखा जा सकेगा। यानि कि ग्रहण के दौरान या किसी तरह के सूर्य किरणों में आने वाली रुकावट के दौरान भी सूर्य को देखा जा सकेगा।
इस तरह से सौर गतिविधियों एवं अंतरिक्ष मौसम पर उसके प्रभावों पर लगातार निगरानी रखी जा सकेगी।

सूर्य के बारे में आप क्या जानते हैं ?

मिशन आदित्य L1, 7 पेलोड (नीतभार) जो कि यंत्रों को ढोने वाले सामान होते हैं, लेकर जाएगा। इसकी मदद से सूर्य के फोटोस्फेयर, क्रोमोस्फेयर और बाहरी सतह का अध्ययन करेंगे।

सूर्य के बारे में जानना क्यों ज़रूरी है ?

सूर्य को जितना हम जानते हैं उससे भी कई गुणा बड़ा और फैला हुआ है। इसके अंदर बहुत सारी विस्फोटक घटनाएँ होती रहती हैं । इस वजह से इससे बहुत भारी मात्रा में ऊर्जा निकलती रहती है । यदि ऐसी कोई घटना होती है जिसमें ऊर्जा के निकलने की दिशा में अगर पृथ्वी हो तब हमारे अंतरिक्ष पर्यावरण में अवांछनीय विक्षोभ (हलचल) उत्पन्न हो सकता है।


इनकी वजह से हमारे उपग्रह ,अंतरिक्ष यान प्रणालियों में परेशानी आ सकती है या उन्हें क्षति पहुँच सकता है । नतीजन, हमारी संचार प्रणाली या संबंधित प्रणालियों में बाधा पहुँच सकती है। यदि कोई अन्तरिक्षयात्री विस्फोट की इस ऊर्जा के संपर्क में आता है तो वो ख़तरनाक हो सकता है।

सूरज में होने वाली तापीय एवं चुंबकीय परिघटनायें बहुत ही तीव्र प्रकृति की होती है। इतने ज़्यादा स्तर की घटनाओं को हम प्रयोगशाला में अध्ययन नहीं कर सकते हैं। इस नज़र से यह मिशन हमारे लिए एक बड़ा प्राकृतिक प्रयोगशाला साबित होगा।

सूर्य का अध्ययन अंतरिक्ष से क्यों किया जाये ?

सूर्य लगभग सभी वैद्युत-चुम्बकीय विकिरणों को उत्सर्जित करता है। विकिरण के उदाहरणों में एक्स-रे, प्रकाश, मोबाइल विकिरण, ऊष्मीय विकिरण आदि हैं। पृथ्वी का अपना एक चुंबकीय क्षेत्र होता है । यह चुंबकीय क्षेत्र और हमारा वायुमंडल एक कवच के रूप में काम करता है और हमें सूरज के हानिकारक विकिरणों से हमारी रक्षा करता है।


चूँकि ये विकिरण धरती तक नहीं पहुँच पाते हैं, अतः इनका धरती से अध्ययन नहीं किया जा सकता है।इसके लिए हमें ऐसे स्थान की ज़रूरत होगी जो पृथ्वी के चुंबकीय कवच से काफ़ी दूर हो। लाग्रेंज बिन्दु (L1) ऐसी ही एक जगह है।

क्या आदित्य L1 सूर्य के बारे में सारी पूरा अध्ययन कर लेगा?

नहीं। धरती से भेजे जाने वाले कोई भी मिशन सूर्य के बारे में आंशिक जानकारी ही प्राप्त कर सकता है। इसका कारण यह है की सूरज और उसके गतिविधियों के फैलाव के सामने हमारे द्वारा भेजे जाने वाले अंतरिक्ष यान और नीतभार की क्षमता काफ़ी सीमित है।
फिर भी आदित्य L1 जैसे मिशन हमें सूर्य और उसके आसपास होने वाली परिघटनाओं के बारे में विस्तृत जानकारी देंगे।

इतना ही नहीं, यह मिशन भारत को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से एक नयी पहचान देने में मदद करेगा।

सूचना स्रोत : ADITYA-L1 (isro.gov.in)

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